नए कदम
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उन्होने खूब तमाशा बनाया हमारा हमे पास बुला कर।
महफिल खुद की रोशन की हमारी आबरू जला कर॥
खुद की खुशी में वो इस तरहा मदहोश रहे।
क्या मिला उन्हे एक बेकसूर का मज़ाक बना कर॥
कितने होंगे जो चुपचाप अपनी ज़िल्लत सह कर।
चले आते बेजजती पर चंद आसूँ बहा कर॥
उन्होने न सही पर हमने तो मर्यादा रखी।
हम चुप रहे सुनकर वो खुश रहे सुना कर॥
चंद बाते सुनाये और वो बड़े, बड़े हो गए।
सुनी सुनाई बात पर मारने के लिए खड़े हो गए॥
अब उन्हे भी क्या करें बस गलत बना कर।
अपनों ने जब लगाई आग एक अफसाना सुना कर॥
जब रौनक सजी हम बहुत खुश हुए।
फिर धीरे से हम निशाना – ए- साजिश हुए॥
कहते है शब्दों के खाव कभी नहीं भरते।
ए खुदा, कायम रखना ये घाव, नासूर बना कर॥
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