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सब कुछ थम सा गया है वादियों में
आकाश गहरा सा रंग ले कर गहराता ही जाता है।
और कभी एकदम साफ दिखाई देता है रुई से बादलों के साथ खेलता हुआ॥
बादल भी रमते जोगी की तरहा आवारा बहता जाता है।
आह! इतना लुभावन दृश्य मन को भाता है॥
ऊंचे ऊंचे नीलगिरी के वृक्ष जाने कितनों सालों से यूहीं खड़े है।
कई लाखों होंगे शायद की नज़र से कभी दूर ही नहीं होते॥
और हरयाली बिखेरते चाय के बागान घाटी की चादर है शायद।
यह सुंदर दृश्य सृष्टि के कभी बंद नहीं होते॥
रात की आगोश में वादी और सुहानी हो जाती है।
मैंने सुनी है, उसकी खामोशी, उसकी खुसफुसाहट॥
और दूर दिखते है पर्वत के किनारे जिनसे वादी घिरी है।
और वादी की खुशबू हवा को और रूमानी करती है॥
मन करता है की एक छाया बनकर रात के अंधेरे से मिल जाऊँ।
और हर सुबह किरण बनकर वादियों को रौशन कर दूँ॥
बारिश की बूंदें बनकर गिरि पर गिरूँ और वादियों में बह जाऊँ।
मन करता है की में बस यहीं बस जाऊँ, थम जाऊँ॥
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