नए कदम
- 40 Posts
- 49 Comments
महेमान नहीं है हम भी तेरे हमवतने-यार है।
जो वो हमको गैर समझे फिर तो वो बीमार है॥
खून में उनके जो नशा है ताकत, तख्तो ताज का।
तो कसम हैं हम को भी की यह आखरी सरकार है॥
शहर-ए-खिजा में लानी ज़िंदगी की बहार है।
भूले बिसरे वीर पद्दों से आंदोलन की यलगार है॥
मटमैली गलियों से सियासत को ललकार है।
गीली लकड़ी भी अब जलने को तैयार हैं॥
बेहोशी में भी आँखों का मूंदने से इंकार है।
गिर के उठने की खवाईश सिने में हर बार है॥
बहने दो लहू की जैसे होली का त्योहार है।
जिंदगी भी काम है इतना धरती का उपकार है॥
Read Comments