नए कदम
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मझधार में फँसी मेरी नाव लगती है।
कभी चलती कभी रुकती मेरी नाव लगती है॥
किनारा ताकता रहा जब घाट छोड़ा था।
पता था दूर हो गया हूँ हर सहारे से॥
एक पतवार ही है आशा मेरे इस सफर में।
मेरे जीवन की कहानी मेरी नाव लगती है॥
कभी उसको दिशा दूँ कभी वो मुझको दिशा दे।
कभी किनारो से दूर करदे कभी किनारा दिखा दे॥
कभी भावर मे फसती फिर बचा लेती है मुझे को।
मेरी समझ से भी समझदार मेरी नाव लगती है॥
मैंने हर समान खो दिया जीवन की नदी में।
वो सुहाना समय बीत गया धारा की गति में॥
जो किनारे पहचानता था वो पीछे छूट गए।
अब नए साहिल की तलाश में मेरी नाव लगती है॥
मझधार में फँसी मेरी नाव लगती है।
कभी चलती कभी रुकती मेरी नाव लगती है॥
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