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एक और शाम

नए कदम
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मेरी एक और शाम बीत गयी उस चौबारे पर।

वो जहां मुझे से कह कर गए थे बस कुछ पल और॥

कहीं दूर मुझे एक साया सा आज भी दिखा है।

लगता है कुछ और शामें बीतेंगी उस चौबारे पर॥

 

मुझे नहीं परेशान करती वो यादें वो आखें।

मुझे नहीं रुलाती अब यह दूरी यह रातें॥

हाँ एक सुनी रह जरूर लगती है तन्हा ज़िंदगी।

जब हर मोड़ आता है उस चौबारे पर॥

 

कल कोई आया था मेरी दहलीज़ पर।

उसका न नाम था न कोई सूरत॥

पर एक एहसास था एक खुशबू सी थी।

मेरी भी तो पहचान रहा गयी उस चौबारे पर॥

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