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नहीं आती

नए कदम
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मेरे न होके भी वो मेरे ही रहेंगे ।

उन्हे खुद को चुराने की कला नहीं आती ॥

इस हाल-ए-दिल को मलहम न करो ।

क्योंकि दर्द-ए-दिल की दवा नहीं आती ॥

 

बहुत मजबूर है वो जो मुझेसे दूर बैठे है।

उन्हे वापस आने की राह नज़र नहीं आती ॥

कभी बुला लिया था मुझे अपना जानशी कहके ।

तो फिर क्यों आशिक-ए-बीमार की कदर नहीं आती ॥

 

की मायूस बैठे है यह पर्वत झील फूल और पत्ते।

की मौसम-ए-बाहार भी अब इस तरफ नहीं आती॥

मुझे आपकी नजरंदाजी कबूल है लेकिन।

कुदरत को आपकी तबीयत समझ नहीं आती ॥

 

अब लगता है वो मुझे भूल गए होंगे ।

की साँसो से अब उनकी महक नहीं आती ॥

न पूछो मैं जिंदा हूँ या जी रहा हूँ मैं ॥

की धड़कन जो जाती है तो वापस नहीं आती ॥

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