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भावूक मैं

नए कदम
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यह मेरा वो रूप है जो मुझे अच्छा नहीं लगता क्योंकि यह ऐसे सवाल सामने ला देता है जिसका उत्तर ढूंढने का साहस नहीं है
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क्या कुछ कम है इस जीवन मे?
क्या कुछ नहीं है इस जनम मे?

थोडा सा भावूक हो कर सोचा तब लगा

कुछ ऐसा कोई मुझे हमेशा खुश रख पता
कुछ ऐसा जो हमेशा मेरे साथ होता
उसके एक स्पर्श से नयी जीवन धारा बहती
उसके होने से हर पल एक रवानगी आती 

क्या कुछ कम है इस जीवन मे?
क्या कुछ नहीं है इस जनम मे?

शायद वो कुछ पैसे की कीमत पर मिलता
या पूरे पैसे पर भी न मिलता
शायद वो मुझे कभी नहीं मिलेगा
या शायद किसी को कभी नहीं मिलेगा

पर एक अहेसास ज़रूर है उस अंजान खुशी का
की वो नहीं है
एक रूपए मे या एक हज़ार रुपेये मे
की वो नहीं है
एक सुबह मे या जीवन की हर सुबहे मे
की वो नहीं है
और उसके नहीं होने से एक कमी है जीवन मे इस जनम मे

क्या कुछ कम है इस जीवन मे?
क्या कुछ नहीं है इस जनम मे?

कैसी होगी वो खुशी
वो एक चीज़ जो नहीं है अभी

एक साधू की समाधि सी पवित्र
एक माँ की ममता सी अमृत
एक रात के सापने सी अनभुज
एक सावन की हवा सी अढ़्भूत

या फिर एक कवि की कोई कल्पना
या क्लिष्ठ जैसे संसार की सनरचना
या है वो एक फूल की कूशबू मे
या फिर एक स्त्री की गुफ़्त्गू मे

या फिर शायद वो खुशी है ही नहीं
और सही है यह जीवन जैसे भी है अभी
और गलत है मेरी उस खुशी की खवाईश
जो मुझे लगता है की अभी तक नहीं मिली

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