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परिचित अजनबी

नए कदम
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एक अजनबी व्यक्ति से पूछ बैठा |

यह तुमने मेरे साथ क्या किया ||

क्यों नहीं साथ दिया मेरा |

क्यों मेरा तिरस्कार किया ||

फिर देखता हूँ की नज़ारा बदल गया है |

क्या यह मैं हूँ या कोई और है ||

और कौन है यह व्यक्ति जो पहचाना सा दिखता है |

और क्यों मेरी बात पर नहीं शर्मिंदा है ||

और कई सवाल कर रहे हैं मुझे परेशान |

पर उनका कोई जवाब नहीं ||

हजारों  सदियों का दर्द है इतना |

की दर्द का कोई हिसाब नहीं ||

और बहुत पीड़ा है इन सब से |

पर नहीं ज्ञात होता है कब से ||

शायद अभी नहीं हुआ है यह सब |

पर लगता है हुआ है यह सब ||

पर कुछ याद नहीं |

अच्छी ख़ासी स्मृति है मेरी ||

माँ का प्यार पिता की फटकार |

school college दोस्त यार ||

हॉँ सब स्मरण है |

जीवन का हर पाल याद है ||

पर लगता है कुछ और हुआ था |

नहीं तो वो व्यक्ति कौन था ||

मैं अभी भी सोच रहा हूँ |

मैं अभी भी सोच रहा हूँ ||

फिर सोचता हूँ की मेरे साथ |

क्या ऐसा ही होगा किसी जनम में ||

की अचानक पहचान बैठूँगा तुम्हें |

और सोचता फिरूँगा की यह कौन है… परिचित अजनबी ||

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